देखा तो कोई और था सोचा तो कोई और
Poet: मोएज़ By: Maaz, Karachiदेखा तो कोई और था सोचा तो कोई और
जब आ के मिला और था चाहा तो कोई और
उस शख़्स के चेहरे में कई रंग छुपे थे
चुप था तो कोई और था बोला तो कोई और
दो-चार क़दम पर ही बदलते हुए देखा
ठहरा तो कोई और था गुज़रा तो कोई और
तुम जान के भी उस को न पहचान सकोगे
अनजाने में वो और है जाना तो कोई और
उलझन में हूँ खो दूँ कि उसे पा लूँ करूँ क्या
खोने पे वो कुछ और है पाया तो कोई और
दुश्मन भी है हमराज़ भी अंजान भी है वो
क्या 'अश्क' ने समझा उसे वो था तो कोई और
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लम्हे लम्हे की ना-रसाई है लम्हे लम्हे की ना-रसाई है
ज़िंदगी हालत-ए-जुदाई है
मर्द-ए-मैदाँ हूँ अपनी ज़ात का मैं
मैं ने सब से शिकस्त खाई है
इक अजब हाल है कि अब उस को
याद करना भी बेवफ़ाई है
अब ये सूरत है जान-ए-जाँ कि तुझे
भूलने में मिरी भलाई है
ख़ुद को भूला हूँ उस को भूला हूँ
उम्र भर की यही कमाई है
मैं हुनर-मंद-ए-रंग हूँ मैं ने
ख़ून थूका है दाद पाई है
जाने ये तेरे वस्ल के हंगाम
तेरी फ़ुर्क़त कहाँ से आई है
ज़िंदगी हालत-ए-जुदाई है
मर्द-ए-मैदाँ हूँ अपनी ज़ात का मैं
मैं ने सब से शिकस्त खाई है
इक अजब हाल है कि अब उस को
याद करना भी बेवफ़ाई है
अब ये सूरत है जान-ए-जाँ कि तुझे
भूलने में मिरी भलाई है
ख़ुद को भूला हूँ उस को भूला हूँ
उम्र भर की यही कमाई है
मैं हुनर-मंद-ए-रंग हूँ मैं ने
ख़ून थूका है दाद पाई है
जाने ये तेरे वस्ल के हंगाम
तेरी फ़ुर्क़त कहाँ से आई है
Taimoor






