तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
Poet: स्पष्ट By: Fahad, Rawalpindiतुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो
आँखों में नमी हँसी लबों पर
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो
बन जाएँगे ज़हर पीते पीते
ये अश्क जो पीते जा रहे हो
जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है
तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो
रेखाओं का खेल है मुक़द्दर
रेखाओं से मात खा रहे हो
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लम्हे लम्हे की ना-रसाई है लम्हे लम्हे की ना-रसाई है
ज़िंदगी हालत-ए-जुदाई है
मर्द-ए-मैदाँ हूँ अपनी ज़ात का मैं
मैं ने सब से शिकस्त खाई है
इक अजब हाल है कि अब उस को
याद करना भी बेवफ़ाई है
अब ये सूरत है जान-ए-जाँ कि तुझे
भूलने में मिरी भलाई है
ख़ुद को भूला हूँ उस को भूला हूँ
उम्र भर की यही कमाई है
मैं हुनर-मंद-ए-रंग हूँ मैं ने
ख़ून थूका है दाद पाई है
जाने ये तेरे वस्ल के हंगाम
तेरी फ़ुर्क़त कहाँ से आई है
ज़िंदगी हालत-ए-जुदाई है
मर्द-ए-मैदाँ हूँ अपनी ज़ात का मैं
मैं ने सब से शिकस्त खाई है
इक अजब हाल है कि अब उस को
याद करना भी बेवफ़ाई है
अब ये सूरत है जान-ए-जाँ कि तुझे
भूलने में मिरी भलाई है
ख़ुद को भूला हूँ उस को भूला हूँ
उम्र भर की यही कमाई है
मैं हुनर-मंद-ए-रंग हूँ मैं ने
ख़ून थूका है दाद पाई है
जाने ये तेरे वस्ल के हंगाम
तेरी फ़ुर्क़त कहाँ से आई है
Taimoor






