तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
Poet: मिर्ज़ा ग़ालिब By: शाह, Mumbaiतुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से कि इस में आग दबी है
दिला ये दर्द-ओ-अलम भी तो मुग़्तनिम है कि आख़िर
न गिर्या-ए-सहरी है न आह-ए-नीम-शबी है
नज़र ब-नक़्स-ए-गदायाँ कमाल-ए-बे-अदबी है
कि ख़ार-ए-ख़ुश्क को भी दावा-ए-चमन-नसबी है
हुआ विसाल से शौक़-ए-दिल-ए-हरीस ज़ियादा
लब-ए-क़दह पे कफ़-ए-बादा जोश-ए-तिश्ना-लबी है
ख़ुशा वो दिल कि सरापा तिलिस्म-ए-बे-ख़बरी हो
जुनून ओ यास ओ अलम रिज़्क़-ए-मुद्दआ-तलबी है
चमन में किस के ये बरहम हुइ है बज़्म-ए-तमाशा
कि बर्ग बर्ग-ए-समन शीशा रेज़ा-ए-हलबी है
इमाम-ए-ज़ाहिर-ओ-बातिन अमीर-ए-सूरत-ओ-मअनी
'अली' वली असदुल्लाह जानशीन-ए-नबी है
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लम्हे लम्हे की ना-रसाई है लम्हे लम्हे की ना-रसाई है
ज़िंदगी हालत-ए-जुदाई है
मर्द-ए-मैदाँ हूँ अपनी ज़ात का मैं
मैं ने सब से शिकस्त खाई है
इक अजब हाल है कि अब उस को
याद करना भी बेवफ़ाई है
अब ये सूरत है जान-ए-जाँ कि तुझे
भूलने में मिरी भलाई है
ख़ुद को भूला हूँ उस को भूला हूँ
उम्र भर की यही कमाई है
मैं हुनर-मंद-ए-रंग हूँ मैं ने
ख़ून थूका है दाद पाई है
जाने ये तेरे वस्ल के हंगाम
तेरी फ़ुर्क़त कहाँ से आई है
ज़िंदगी हालत-ए-जुदाई है
मर्द-ए-मैदाँ हूँ अपनी ज़ात का मैं
मैं ने सब से शिकस्त खाई है
इक अजब हाल है कि अब उस को
याद करना भी बेवफ़ाई है
अब ये सूरत है जान-ए-जाँ कि तुझे
भूलने में मिरी भलाई है
ख़ुद को भूला हूँ उस को भूला हूँ
उम्र भर की यही कमाई है
मैं हुनर-मंद-ए-रंग हूँ मैं ने
ख़ून थूका है दाद पाई है
जाने ये तेरे वस्ल के हंगाम
तेरी फ़ुर्क़त कहाँ से आई है
Taimoor






