अल्लामा इक़बाल शायरी और नज़्म हिंदी में - Allama Iqbal Shayari in Hindi
Allama Iqbal Shayari in Hindi - अल्लामा इक़बाल शायरी पाठकों को खूबसूरत शायरी की मदद से अपनी आंतरिक भावनाओं को व्यक्त करने की अनुमति देती है। अल्लामा इकबाल शायरी, इकबाल की शायरी और ग़ज़ल उन लोगों के बीच लोकप्रिय है जो अच्छी हिंदी शायरी पढ़ना पसंद करते हैं। आप 2 और 4 पंक्तियों की शायरी पढ़ सकते हैं और अल्लामा इकबाल की शायरी की तस्वीरें डाउनलोड कर सकते हैं और इसे आसानी से अपने प्रियजनों के साथ साझा कर सकते हैं। अब तक अल्लामा इक़बाल शेर पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं। हिंदी ग़ज़ल पाठकों की अपनी पसंद है और यहां आप छात्रों के लिए हिंदी में अल्लामा इकबाल की शायरी पढ़ सकते हैं।
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की
सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं
सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़
सो हम भी मो'जिज़े अपने हुनर के देखते हैं
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं
सुना है हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं
सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उस की
सुना है शाम को साए गुज़र के देखते हैं
सुना है उस की सियह-चश्मगी क़यामत है
सो उस को सुरमा-फ़रोश आह भर के देखते हैं
सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पे इल्ज़ाम धर के देखते हैं
सुना है आइना तिमसाल है जबीं उस की
जो सादा दिल हैं उसे बन-सँवर के देखते हैं
सुना है जब से हमाइल हैं उस की गर्दन में
मिज़ाज और ही लाल ओ गुहर के देखते हैं
सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ में
पलंग ज़ाविए उस की कमर के देखते हैं
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं
वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं
कि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
बस इक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का
सो रह-रवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं
सुना है उस के शबिस्ताँ से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जल्वे इधर के देखते हैं
रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं
चले तो उस को ज़माने ठहर के देखते हैं
किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखे
कभी कभी दर ओ दीवार घर के देखते हैं
कहानियाँ ही सही सब मुबालग़े ही सही
अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं
अब उस के शहर में ठहरें कि कूच कर जाएँ
'फ़राज़' आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
नज़्ज़ारे की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे
वाइ'ज़ कमाल-ए-तर्क से मिलती है याँ मुराद
दुनिया जो छोड़ दी है तो उक़्बा भी छोड़ दे
तक़लीद की रविश से तो बेहतर है ख़ुद-कुशी
रस्ता भी ढूँड ख़िज़्र का सौदा भी छोड़ दे
मानिंद-ए-ख़ामा तेरी ज़बाँ पर है हर्फ़-ए-ग़ैर
बेगाना शय पे नाज़िश-ए-बेजा भी छोड़ दे
लुत्फ़-ए-कलाम क्या जो न हो दिल में दर्द-ए-इश्क़
बिस्मिल नहीं है तू तो तड़पना भी छोड़ दे
शबनम की तरह फूलों पे रो और चमन से चल
इस बाग़ में क़याम का सौदा भी छोड़ दे
है आशिक़ी में रस्म अलग सब से बैठना
बुत-ख़ाना भी हरम भी कलीसा भी छोड़ दे
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
जीना वो क्या जो हो नफ़स-ए-ग़ैर पर मदार
शोहरत की ज़िंदगी का भरोसा भी छोड़ दे
शोख़ी सी है सवाल-ए-मुकर्रर में ऐ कलीम
शर्त-ए-रज़ा ये है कि तक़ाज़ा भी छोड़ दे
वाइ'ज़ सुबूत लाए जो मय के जवाज़ में
'इक़बाल' को ये ज़िद है कि पीना भी छोड़ दे
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
मक़ाम-ए-गुफ़्तुगू क्या है अगर मैं कीमिया-गर हूँ
यही सोज़-ए-नफ़स है और मेरी कीमिया क्या है
नज़र आईं मुझे तक़दीर की गहराइयाँ इस में
न पूछ ऐ हम-नशीं मुझ से वो चश्म-ए-सुर्मा-सा क्या है
अगर होता वो 'मजज़ूब'-ए-फ़रंगी इस ज़माने में
तो 'इक़बाल' उस को समझाता मक़ाम-ए-किबरिया क्या है
नवा-ए-सुब्ह-गाही ने जिगर ख़ूँ कर दिया मेरा
ख़ुदाया जिस ख़ता की ये सज़ा है वो ख़ता क्या है
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
ज़रा सा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना
वही लन-तरानी सुना चाहता हूँ
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी आशियाँ और भी हैं
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं
इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जा
कि तेरे ज़मान ओ मकाँ और भी हैं
गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मिरे राज़-दाँ और भी हैं
Allama Iqbal Shayari in Hindi
मुहम्मद इक़बाल, जिन्हें अल्लामा इक़बाल के नाम से भी जाना जाता है, पाकिस्तान के राष्ट्रीय कवि हैं। एक कवि, वकील दार्शनिक, राजनीतिज्ञ और विद्वान, इकबाल का जन्म 9 नवंबर 1877 को पंजाब में हुआ था। 9 नवंबर को पूरी दुनिया में इकबाल दिवस मनाया जाता है। उनका पालन-पोषण कश्मीरी माता-पिता ने किया और सियालकोट के स्कॉच मिशन कॉलेज में पढ़ाई की। अल्लामा इक़बाल को 1922 में किंग जॉर्ज पंचम से "सर" की उपाधि मिली। पूर्व के कवि होने के अलावा, अल्लामा इक़बाल को "मुसाविर ए पाकिस्तान", "हकीम-उल-उम्मत" और "मुफ़ाकिर-ए" का दर्जा प्राप्त है। -पाकिस्तान"। आजादी के बाद वह पाकिस्तान के राष्ट्रीय कवि बन गए। उनकी लोकप्रिय रचना "सारे जहाँ से अच्छा" भारत का राष्ट्रगान बन गयी।
हिंदी, उर्दू और फ़ारसी भाषाएँ। छात्रों के लिए हिंदी में अल्लामा इकबाल कविता भारत-पाक में पाठकों के लिए अत्यधिक प्रेरक और दिलचस्प रही है। हिंदी में अल्लामा इक़बाल की कविताएँ अत्यधिक प्रेरणादायक हैं और भारत में मुसलमानों के बीच स्वतंत्रता के प्रति प्रेम जगाती हैं। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी कविता के माध्यम से उपमहाद्वीप के मुसलमानों के सामने भारत के दर्शन का आह्वान किया। अल्लामा इक़बाल शायरी पुस्तक, असरार-ए-खुदी, 1915 में फ़ारसी भाषा में प्रकाशित हुई, और शायरी की अन्य पुस्तकों में शामिल हैं:
अल्लामा इक़बाल की कुछ मशहूर शायरी
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहलेख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं
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- Areesha , Peshawar
- Thu 30 Oct, 2025
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- Sonia , Karachi
- Wed 29 Oct, 2025
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- Sidra , Karachi
- Tue 28 Oct, 2025